Pravasi Mithila

12.8.17

जहर

समाजक चारू कात
फैलल ई जहर
आओर काहिया तक
भक्षण करतै मानवताक 
कहिया भरतै एकर पेट
दोसरक हिस्सा खेला सं
भरि दिनं गिद्ध जकां
नजैर गारेने रहैत अछि,
गिद्ध ते करेत अछि भक्षण
मारलाक बाद,
नहि मारैत अछि चोच
जिवल प्राणी पर काहियो
मुदा एकरा लेल
सब जीव निर्जीव
एकहि रंग छैक
सब अप्पन आ आन
एकहि रंग छैकआ
लोकक आँखि मे
धूल झोकि के
बनि जायत अछि
अप्पन जैतक अगुआ
काखनो बनि जैत अछि
अप्पन धर्मक अगुआ
काखनो सहिष्णुतावाद
तँ कखनो धर्मनिरपेक्ष
बदलैत रहैत अछि
बहुरुपिया ज़कां रूप
अप्पन स्वार्थक लेल l
रचनाकार : दयाकान्त

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