Pravasi Mithila

24.12.20

भिखमंगा (लघु कथा)

आई पढुआ काका के आंगन मे छप्पन भोगक तैयारी भऽ रहल अछि सब कियो ब्यस्त अछि | आई हुनकर बेटा के तिलक छियैन 21 आदमी सं खान-पीन मे आबि रहल छथिन | पढुआ काका बेटा के जखने बैंक पीओ मे भेलैन की कन्यागत के लाइन लागि गेल प्राईवेट नौकरी वाला के तऽ आब कतेक खुशामद केला पर विवाह होयत छैक मुदा सरकारी नौकरी वाला के मनमाफिक दहेज आ कन्या भेटैत छैक |

|सबकियो काजक मे ब्यस्त छल कि अंगनाक कोंटा पर भिखमंग हाक दबय लगल मलकैन भिख दऽ दिया.. भिख दऽ दिया पढुआ काकी अॉखि लाल पिअर करैत भिखमंगा के डांटय लगली तोरा एको रति लाज नहि होयत छौक शुभ घड़ी मे आन्हर भऽ के भिख मांगै लेल आबि गेलाऽ लाज नहि होयत छौ काजक अंगना मे तखन सं अनघोल केने छाऽ|

मलकैन हमरा तऽ ऑखि नहि अछि तैयो लाज हौया तहि द्वारे अप्पन जिला जयवाड़ छोड़ी के भिख मांगैत छी, अप्पन पेटक खातिर, मुदा अहां के कुटुम्ब समाजक सामने बेटा बेचैत लाज नहि भेल |


दयाकान्त |

8.3.18

परीक्षा

शरीर में गुदा नहि हड्डीक काया
पांचे बजे भोर सं लागि जैत अछि
अपन माया जाल मे
पुरा घर के भार जे छैक
एकरा कपार पर
घsरवाला रहैत छैक
घोड़ा बेचि के वेसुध भेल
सुतल
ओकरा नहि छैक कोनो चिंता
बच्चा के स्कुलक पठेबाक
आ कनियाक स्कुल छोड़वाक
सबटा भार जे उठेने छैक
बच्चाक माय |
भोरका घड़ी एतेक तेज
किया चलैत छैक ?
फेर
आई प्रिंसपल सँ
भेटतैक फटकार
आओर नोटिस
मैडम ऐसे काम नही चलेगा
काम नही करना है तो अराम से घर बैठ जाओ
दुसरा नौकरी ढूंढ लो
घsर एवाक काल
बैन्ह दैत छैक मोटरी
बच्चाक परीक्षाक पेपर
आ स्कुलक बही खाता सब
कहियो प्रशन ते कहियो
रिजल्ट
दोसरक जिनगी बनबय बाली
और कतेक करत संघर्ष अपन जिनगी सँ

2.9.17

मुँहपुरुख

टोल मे आई अनघोल केने छै 
बिना बात बतंगड़ बनेने छै
टोल-परोसक लोक जुटल छै
सब के सब ठार बौक भेल छै
असगरे आसमर्द मचेने छै
मुँहपुरुख आई खुब बनल छै 
बेमतलब अनघोल केने छै
लाउडस्पीकर के फेल केने छै 
फॉड़ बान्हि असगरे कुदै छै 
टोकला पर और जोर मारै छै 
कखनो पुरब कखनो पछिम 
कखनो उतर कखनो दक्षिण 
खुटेसल माल जकाँ घुमै छै 
मुद्दे के ई मैट दैत छै 
कखनो धोती कखनो कुरता 
कखनो गंजी कखनो गमछा 
लोकके देखिके खोलि फेकै छै 
एके टाँग पर खुब नचै छै
जेठ छोट लाजे नहि छै 
सबहक संग एके बोल बजै छै 
सज्जन लोक सब दुर भगै छै 
दुरजन सबटा दोस्त बनल छै 
माय बोहिन किछु नहि बुझै छै 
ठोरे पर एकरा गारि रहै छै 
दबल कुचल के डपैट दैत छै 
भरिगर देखिते मुरी झुकबै छै 
करनी हिनकर झरकल सनके 
लोक एकरा मुँहपुरुख कहै छै  l

12.8.17

जहर

समाजक चारू कात
फैलल ई जहर
आओर काहिया तक
भक्षण करतै मानवताक 
कहिया भरतै एकर पेट
दोसरक हिस्सा खेला सं
भरि दिनं गिद्ध जकां
नजैर गारेने रहैत अछि,
गिद्ध ते करेत अछि भक्षण
मारलाक बाद,
नहि मारैत अछि चोच
जिवल प्राणी पर काहियो
मुदा एकरा लेल
सब जीव निर्जीव
एकहि रंग छैक
सब अप्पन आ आन
एकहि रंग छैकआ
लोकक आँखि मे
धूल झोकि के
बनि जायत अछि
अप्पन जैतक अगुआ
काखनो बनि जैत अछि
अप्पन धर्मक अगुआ
काखनो सहिष्णुतावाद
तँ कखनो धर्मनिरपेक्ष
बदलैत रहैत अछि
बहुरुपिया ज़कां रूप
अप्पन स्वार्थक लेल l
रचनाकार : दयाकान्त

9.10.14

घटक (हास्य कविता)

हमर नाम थीक घटकराज
बिआह कराएब हमर काज
लंगड़ा लुल्हा वा बहिर अकान
बौक बताह सज्जन सैतान
कोढिआ जे भरि दिन बैसै मचान
चाहे कियो हो ऑफिसक बबुआन
हमरा लेल सब कियो एक समान
करै छी सबहक हम ओरिआन 
कुमार-बार सब बाट-घाट
दलान पर बैसि तोरय खाट
पुछैया हमरा सँ एकेटा बात
हमरा लेल कतहु केलियै बात
हमर बाप नहि चंडाल थीक
दहेजक नाम पर मंगैया भीख
सियेने अछि बरका टा बटुआ
कनियाँ नहि आदमी तकैया बरका
उन्तीस बितल तीस चढ़ि गेल
माथक केश पाकब शुरू भेल
बैशाख बितल जेठ चढि गेल
दुटा दिन आब बाँचल रहि गेल
 कsर  जोरी अहाँक शरण मे,
छी हम काका ठार
दहेजक मारल बच्चा बुझि के
हमरा करुँ उधार
हमरा अछैते भरि गाम मे
नहि कियो रहत कुमार
कोनो न कोनो खड़यत्र रचि के
करब सबहक उधार l
दयाकान्त 

7.10.14

कोजगराक भाड़ (हास्य कविता)



कतय गेलाह समधि महराज
ई की अनलहुँ डाला भाड़ ?
भरि गाम में होयत हसारथ
केहेन दरिद्र घर बेटा बिआहल
नहि बुझल छल ते पुछियो लैतहुँ
कतेक टा अछि हमर गाम
एको मुठी के बाँटब जs ते
चाही पाँच बोरा मखान
दस चंगेरा खाजा चाही
पंद्रह टा लड्डु के भाड़
बिस तौला दही चाही
रसगुल्ला चाही दस हजार
एक महिना पहिने अहाँके
देने रही हम लिस्ट पठाय
तैयो अहाँ जनिबुझी के
देलहुँ हमर नाक कटाय
सोन सनक बेटा हम देलहुँ
पढ़ल लिखल एतेक गुणवाण
नहि केलहुँ बिचार एकर कनि
कोना बाँचत हमर मान सम्मान
अपने मुँह सँ बाजल छलहुँ
कोजगरा मे देब फटफटीआ
नहि अछि मोल जबानक कोनो 
की भs गेल ठार अहाँक खटिआ ?
दयाकान्त  

16.8.14

टमटम गाड़ी (बाल कविता)


बिना तेल ट्युब के रोड पर
दौड़े छै घोड़ा गाड़ी
सबसे पहिने भेट जाय छै
एकरा खुब सबारी
नहि छै प्रदूषण के खतरा
नहि डीजल पेट्रोलक झंझट
नहि पी पी कs सोर मचाबै
नहि ध्वनि प्रदूषण के झंझट
चल घोड़ा तु बामा चल
मोर पर लs ले दहिना कट
बड़ मनोरम झुला झुलबै छै
घsर पहुँचाबै छै झटपट    
सतयुग त्रेता द्वापर युग मे
देबता आ राजाक सवारी
कलयुग मे नाम बदलि गेल
कहै छै सब टमटम आ घोड़ा गाड़ी

रचनाकार दयाकान्त

15.8.14

संकल्प

आई पन्द्रह अगस्त
राष्ट्रक सबसे पैघ पावनि
सब मिल करू संकल्प
मेटा देब ई जाति धरम के
मेटा देब एकर ढेकेदार के
जे खा रहल अछि मानवता के
दींवार (दीमक) बनि के

सब मिल करू संकल्प
मेटा देब ई दुशासन के
जे निर्वस्त्र कs रहल अछि
देशक अबला धिया के

सब मिल करू संकल्प
मेटा देब बेटी भक्षक के
जे पेट मे लैत अछि जान
श्रृष्टक जननी बेटी के

सब मिल करू संकल्प  
मेटा देब ई भ्रष्ट्राचारी के
जे कs रहल अछि देशक शोषण
गरीब-गुरुआ लोकक

सब मिल करू संकल्प
रोपब प्रतिबर्ष एकटा गाछ
नहि खेत भेटत तँ बाट-घाट
नहि लेब दहेज नहि देब दहेज
ओकादिक बाहर नहि भोज-भात
नहि करब नशा तारी-दारू
नहि छुअब कहिओ तमाकुल पदार्थ l

रचनाकार : दयाकान्त

10.8.14

हमरा बन्हि दे राखी (बाल कविता)


दीदी हमरा बन्हि दे तु
एकटा निकहा राखी
देखहिन राखी बन्हि घुमैया
हमर संगी सब साथी
माथा पर ठोप लगा दे
दे हमरा निकहा मधुर
आब नहि कहियो झगरा करबौ
नहि रहब तोरा सँ दुर
ताग सँ बनल तोहर ई राखी
हमरा करत कवच के काज
नैहर छोड़ि जेमा जखन सासुर
हमरा आयत तोहर बड़ याद
सपत खा के कहै छियौ दीदी
नहि बिसरब हम राखीक लाज
पाछु नहि करबौ कखनो टांग
परतौ तोरा हमर जखन काज
नहि कखनो तोरा क्लेश हो
सदिखन मुँह पर हो मुस्कान
तोरा रक्षाक खातिर हम
लगा देबै अपन हम जान 

रचनाकार : दयाकान्त

24.7.14

आदर्श

बच्चे सँ ओ छल खुरलुच्ची
घsर आ बाहर सब परेशान
कनिये टा मे चिन्हय लगलै
टोल-परोस आ सगरो गाम
स्कुल, कॉलेज आ चौक चौराहा
बदमाशी में एकर पहिल नाम
जखन देखु बेमतलब के
अरबैत रहत हरदम टाँग
कोनो दशगर्दा काज मे
बेसाहि लेत बेकारक फसाद
अपना सँ बलगर देखि के
भs जाय छल चुपचाप कात
दु चारी टा दोस्त बना के
करय लागल उगाही
चिन्हय लगलै थाना-पुलिस
थानेदार आ सिपाही
अबिते एलेक्सन नेता लsग
होबय लगलै पूछ
अगिला चुनाव मे तोरजोर कs
बनि गेल ओ परमुख
लागल रहै छै ओकरा दलान पर
मोछ बाला सबहक जमघsट
बनि गेल भरि गाम मे
आब सबहक आदर्श

रचनाकार : दयाकान्त

23.7.14

दु कठबा बाड़ी

बौआ सुनि ले कान खोलि के
द दे हमर पाई सुद जोरि के
कतहु सँ तु कsर ओरियान
भs गेलौ पुरा बारह मास
अगिला महिना सँ लगतौ
सुदक सुद दरसुदी जोरि के
नहि ते लिख दे दु कठवा बाड़ी
चुपचाप तु हँसी खुसी से
.... काका हम ते जोरि लेने रही हाथ
मैन गेल छल सगर समाज
ग्यारह दुना बाईसक लेल
गरदनि सँ उतरि तोरवाक लेल
अहाँ कहने रहि सुन रौ बैआ
तोहर छलखुन बाप ते हमर छला भैया
करब नीक सँ श्राद्ध और भोज
नहि करब कोनो तरहक ओज
कनिये टा मे मरि गेल छल बाप
केलहुँ बी. ए. हुनके परताप
फेर भैया की घुमि के अयता
कहिया भेटत ऋण सधेवाक मौका
भरि गाम हमर होयत हसारथ
लोक लाज लेल टाका कोन पदारथ
तखन किया मांगै छी दु कठबा बाड़ी
हमर बाल-बच्चा कतs बनाsत दु -चारी

रचनाकार : दयाकान्त

22.5.14

लंगड़ा काका

एकटा सुखायल टाँग
आ लाठी पर ठार लंगड़ा काका
जिनका नहि जरुरत परलैन
कहिओ दोसराक टाँगक
बच्चा मे वा जुआनी मे
नहि भेलैन मुंह मलिन कनिको
विआह नहि भेला पर
नहि परहलखिन गारि कहिओ
दिनकर दीनानाथ के
अपन टाँगक लेल
नहि पसारलैथ अपन हाथ
बहीर सरकार लग
जकर एकटा अंग नहि
पुरा शरीर विकलांग छै
जकरा नहि सुनाई परैत छैक
गरीबक चित्कार कहिओ
जकरा नहि देखाइत छैक
निर्दोष बचियाक बलतकार कहिओ
तखन कोन फायदा ओकरा सँ
हाथ जोरि के फरियाद केला सँ  l

रचनाकार : दयाकान्त

1.4.14

धरती

तोरा कियाक होयत छौ दुःख़
कियाक करैत छाs वियोग
ब्यर्थ मे, हमरा सँ दुर भेला पर
तु ते हमरा कहिओ
अपना नहि बुझलां
सब दिन हमरा सँ
दुरे भागल रहलाs 
तोरा ते सब दिन
डर लगैत छलौ
कादो सँ, माटि सँ
हमर सेवा ते दुर
हमर सेवक जोन हरवाह पर
सदिखन करैत रहलाs
अत्याचार, हमरे प्रतापे

हमरे प्रतापे
तोरा भेटैत छलौ सम्मान
 चिन्हैत छलौ परपट्टा मे
लोक कहैत छलौ "जमींदार"
चलैत छलौ रोब
गरीब-गुरुआ निरीह जनता पर

हम छटपटैत छलहुँ तोरा लग
खोजैत रहलहुँ अपन सेवक
साल दु साल नहि
हजारो साल सँ
जे हमरा अपन बुझय
जकरा हमर जरुरत होई

रचनाकार : दयाकान्त

30.3.14

घुमि जो तुं सोन चिड़ैया

 घुमि जो तुं सोन चिड़ैया
नहि जो छोड़ि दूर देश रे
स्वर्ग सँ सुन्दर धरती छोड़ि के
बसमा कतs विदेश रे 

नहि चाहि हमरा टाका कौड़ी
नहि चाहि सनेश  रे
अपन टुटल टुटली मरैया
करब  जीवन हम शेष रे

अपन स्वार्थक खातिर तोहर
कतरि लेतौ दुनु पाँखि रे
नहि रहमा तु उरवाक काबिल
नहि रहतौ तोरा आँखि रे

 अपन बुद्धि आ श्रमक खरचा
करमा यदि तु गाम रे
अपनहि धरती स्वर्ग बनि जेतौ
भेटथुन एतहि भगवान रे

रचनाकार : - दयाकान्त

8.2.14

बेटाक बिआह

तीन वरस सँ बेटा बिआह
केने छैथ खुब तैयारी
ताकै छैथ दहेज़ आ कन्या
रूप गुण संग बखारी
तेसर साल पन्द्रह, दोसर साल एगारह
आब मांगै छैथ सात लाख
नहि आबै छैन घटक घुमि के
तकैत रहैत छैथ घटकक बाट
भरि दिन झुठ -फुसी बाजि के
मन गढन्त दैत छैथ बयान
अपन मुँह सँ अपन बेटाक
करैत रहैत छैथ बखान
अबिते  लगन कन्यागत सब
करैया बड़ परेशान
फलाs गाम के मुखिया जी
पुछ्लैत कते लेब बौआक दाम
हीत-अपेक्षित और कुटुम्ब सँ
कहैत रहैत छैथ एकेटा समाद
कोनो नीक घsर, कन्या भेsटा ते
करबै हमरो बौआक लेल बात
नहि चाही हमरा  पैसा - कौड़ी
चाही सिरफ विवाहक खर्चा
तीन साल सँ बना के रखने छी 
बिधक लेल सात लाखक परचा

रचनाकार : - दयाकान्त

7.2.14

गाछ

किया तोरै छी डारि हमर
किया नोचै छी हरिअर पात
किया करै छी तंग हमरा
हमरा सँ होयत बड़ काज
रौद मे जरि के जखन अबै छी
अहाँ सबकियो हमरा पास
शीतलताक वर्षा करैत अछि
हमरे गाछक डारि आ पात
हमही मेघ सँ पैन बजा के
करबैत छी रिमझिम वर्षा
आँधी आ तुफान सँ अहाँ के
करैत रहैत छी सदिखन रक्षा
रंग -बिरंगक मिठगर फल
हमरे सँ अहाँके होइया प्राप्त
रंग -बिरंगक तरकारी के
लैत छी अहाँ सब स्वाद
हमर हरियर गाछ पात सँ
करब अहाँ जs पिरित
ख़ुशी -ख़ुशी दिन बितत
बनल रहत दुनु में मीत

रचनाकार - दयाकान्त

6.2.14

मॉडर्न कल्चर

आई मॉडर्न कल्चरक नाम पर
होइत अछि मारा-मारी
एक दोसरा सँ आगु बढ़बा लेल
फेक देलक सब साडी
पहिने बिला गेल साया-साडी
तकरा बाद दुपट्टा
तखन बिला गेल समीज-सलवार
फराक सलबार छोरलक परोपट्टा
कियो मॉडर्न देखेबाक लेल
कियो मॉडल के नाम पर
कियो एक दोसराक होड़ मे
कियो अपन बॉसक नाम पर
ककरो स्वागत कक्षक मजबुरी
कियो परोसिक तान सँ
ककरो कॉलेज में अछि जरुरी
कियो पहिरैत अछि सान सँ
बिसैर गेल अपन माय बाप के
बिसैर गेल सर-समाज
बिसैर गेल अपन भेष, भाषा
बिसैर गेल अपन पावनि-तिहार
कतय सँ आयल पछवा हाबा
पसरि गेल चारु दिश
खा गेल सभ्यता संस्कृति के
सताब्दी इक्कीस। 


रचनाकार : दयाकान्त

3.2.14

टुटी गेल छsहर

सन सत्तासी के बाद सब बेर
टुटै छै किया छsहर ?
कि हमर बाध निच भs  गेल
ऊच भs  गेल धार  आ नहर
आबैत रहैत छल मोन मे
हमरा सदिखन ई सवाल
नहि भेटल आई धरि एकर
कोनो हमरा सटीक जबाब
छsहर पर जे बसल अछि जोगिया
ओकरे से हम पुछि देलियै
सुनिते ओकर जबाब सरिपहुँ
कान दुनु हम मुनि लेलियै
कहलक मालिक अधोतिया कs
सुतल रहि मचान पर
सपत खा के कहै छी मालिक
सुनलहुँ जे हम कान सँ
वाटरबेग के इंजीनियर आ
राक्षसा शेर सिंह ढिकेदार
संग में छलैक रुदला पहलवान
सब मिल एतहि केलक नियार
जो गढ़िया लग छsहर काटी दहिन
देबौ तोरा पचास हजाड़
कनिये काल बाद भरि गाम मे
उठय लगलै हाहाकार
रचनाकार : दयाकान्त

22.1.14

कागजी विकाश

सरकार जनता-जनार्दनक नाम पर
बजबैत रहैत अछि सदिखन गाल
हमरा राज मे गरीबक उत्थान लेल
भेल अछि सबसे बेसी काज
आई धरि नहि केने छल ,
एतेक काज पिछला सरकार
सबके रोटी-कपड़ा संग
रहवाक लेल इंदिरा आवाश
खुशहालक जिनगी-बसर
करैत अछि सबगोट समाज
गामक कात जे दलित टोल अछि
बसैत अछि ओहि मे ५० टा परिवार 
गोट-पगरा छोरि के सब कियो
अछि अखनो ओहिना खस्ताहाल
तीन पुस्त सँ देखैत छियै गरीबा के
नहि भेलैक अखन अपन डीह पर बास
कतबो गंजन करैत छै गिरहत
तैयो छै हरबाहिये के आश
कतय करैत छै सर्वे ई सब
के करैत छैक डाटा तैयार 
अपन अकरमनता छिपेवाक लेल
देखबैत छैक कागजी विकास 

रचनाकार : दयाकान्त

9.11.13

फुलक आँखि सँ झहरल नोर

संभार - गुगल 
गाछ मे लागल फुल सदिखन
करैत रहैत छल सतत बिचार
कोनो जन्मक पुण्यक फल सँ
भेल हमरा फुल मे अवतार
कोनो ने कोनो देवी देवता के
होयत हमरे सँ श्रृंगार
चाहे कोनो प्रेमी युगल
देत हमरे प्रेमक उपहार
देशक कोनो अमर शहीद के
करत कियो पुष्पक अर्पण
वा कियो अपन पितर के
करताs हमरे सँ तर्पण
सहि लेब हम सुईयाक दर्द
बनि जायब जs माला
तैयो कोनो पुण्य काज मे
देवक सिर हो या जयमाला

आई फुल माला बनि के
डर सँ अछि बड़ सशंकित
कहि ओहि नेताक गरदनि चढ़ि ?
जे देश के केने अछि कलंकित
देखिते नेताक गाडी सबकियो
करय लागल जय जयकार
खुलल गेट नेता बहार भेल
पहिरा देलक फुलक हार
कतेक अपहरण कतेक डकैती
कतेक केने अछि हत्या बलत्कार
नहि मोन छैक स्वयं नेता के
केने अछि कोन-कोन फसाद
गरदनि मे जाइतै फुलक
बिचकय लगलै ठोर
फाटि गेलैक छाती ओकर
आँखि सँ झहरय लगलै नोर


रचनाकार : दयाकान्त 

5.10.13

कोजगराक गीत

आई कोजगरा धवल इजोरिया
चम-चम चमकै चान यौ
बाबु पान मखान बटै छैथ
माय करैया चुमान यौ ....

माँझ आँगन मे डाला राखल
तम्बा मे दुबि-धान यौ
पंडित काका दुर्वाक्षत लs
करै छैथ मंत्रक बखान यौ .....

चाँदीक थारी मे कौरी राखल
चमकैया  मोतिक समान यौ
जीत हार के फैसलाक खातिर
भौजी सँ करै छी संग्राम यौ .....

पियर धोती पर दोपटा पाग
पहिर के होईया बड गुमान यौ
आई लगैया फेर मिथिला में
अवध सँ अयला श्री राम यौ

रचनाकार : दयाकान्त 

1.10.13

लेने चलु दुर्गा स्थान (बाल कविता)

बाबा यौ हमरा अपना संग
लेने चलु दुर्गा स्थान
लाई झिल्ली कचरी बिकाई छै
रंग-बिरंग खिलौना के दोकान

देखियै धुक-धुक रेल चलै छै
पी पी कs के चलै छै कार
बानर डिम-डिम ढोल बजबै छै
भालु नचैया चाभीक सुर-ताल

बौआ लेल पिपही किन दिआ
हमरा लेल तीन-चारि टा खिलौना
भरि मटकुरी रसगुल्ला किन दिया
पुरा पौंकेट रामदाना

आई राईत अहाँक संग हम
देखबै छकरबाजी के नाच
भैया सबहक उगना नाटक में
विद्यापति कोना त्यागलथि प्राण  
लेने चलु दुर्गा स्थान

13.8.13

बाबु हमहुँ जायब स्कुल

बड़का भैया कॉलोज जाय छै
छोटका भैया हाई स्कुल
हमर पढाईक नामे सुनु किया
लै छी कान मे तुर
बाबु हमहुँ जायब स्कुल

हमर संगी सब ठेकना, बेकना
पढै लिखैया पोथी खुब
हमरा अहाँ घsर बैसा के
करै छी बड़का भुल
बाबु हमहुँ जायब स्कुल

भोरे उठि हम अँगना बहारब
निपब चिकैन माटि लs नुर
झट दय बर्तन बासन धो के
मुदा जायब स्कुल जरुर
बाबु हमहुँ जायब स्कुल

रचनाकार :- दयाकान्त 

7.8.13

ओकरा कि कोनो बुझल छैक ?
















ओकरा कि कोनो बुझल छैक ?
कोना कटैत छैक जवानक राईत
"देशक सीमा पर"
ओ ते देशक लोक के ठकवाक लेल
अपन कायरता के छिपेवाक लेल
सुरक्षाक घेरा में घिचबैत अछि फोटो
सियाचीन के पर्वत पर
दौरा करैत अछि झुठ-मुठ के 
पुंछ सेक्टर पर
आ चिरौरी करैत रहैत अछि मीडिया
सप्ताह पंद्रह दिन तक
अपन टीआरपी बढेवाक लेल


ओकरा कि कोनो बुझल छैक ?
केहेन होयत छैक मायक दर्द
अपन बेटाक लेल
केहेन होयत छैक पत्नीक दर्द
अपन पतिक लेल
केहेन होयत छैक बच्चाक दर्द
अपन बापक लेल
ओकरो होइतै दर्द जखन,
ओकर कियो अपन होइतै शहीद
दबय परितै अहुरिया
कुहरय परितैक जन्म भरि
ओकर बेटा कोनो सेना मे छैक
देशक सीमा पर बन्दुक लs के ठार
ओकर बेटा तs विदेश में
लs रहल छैक ट्रेनिंग
लोक के ठकवाक लेल
अपन बापक बिरासत के सम्भारक लेल

रचनाकार :- दयाकान्त  

2.8.13

बरखा (बाल कविता)













कारी-कारी मेघ लागल छै
छिटकै छै बिजलोका
रहि-रहि के मेघ गरजै छै
फुटै छै जेना फटक्का
टिपीर-टिपीर बरसय लगलै
सगरो खेत खरिआन
आई संगी-साथी सब मिल
करब बरखा में खुब स्नान
मैया कहै छै नहि नहा बैउआ
भs जेतौ तोरा जड़-बुखार
चुबय लगतौ नाक सँ पोटा
हेतौ उकाशी परमा बिमार
देखहिन हमर संगी-साथी सब
बरखा में करैया स्नान
हम कखन तक बैसल रहब
हाथ-पैर जोड़ी दालान
जे हेतैक से देखल जेतै
हमहू करब बरखा में स्नान
नहि भेटत फेर एहेन मौका
दौगी-दौगी करब खुब स्नान

रचनाकार :- दयाकान्त 

30.7.13

घैल

कोंटा में राखल घैल देखि
मुह बिचकाबैत अछि फ्रिज
हसैत ठहाका मारि के
चढ़बैया ओकरा खिज 
ऐ घैल आब तू घैल नहि
छुतहर भs गेल छाs
आब तु सगर दुनियाँ में
अछूत बनि गेल छाs
... ऐ फ्रिज नहि कर एतेक गुमान
नहि रह्तौक तोरो राज सबदिन
निकलि जेतैक कोनो दोसर विकल्प
घर सँ बाहर करतौक ओहिदिन
हमरा तs घsर सँ केलक कात
मुदा तोरा सहय परतौक
लोहाक मरियाक पसाठ
आ झोंकि देतौक गरम भट्टी में
हम युग-युग केलहु राज
सतयुग, त्रेता, द्वापर आ कलयुग
हमरा बिना नहि चलैत छल काज
हमरा जतेक केलक स्नेह
नवकी कनिआ, बुढ आ जुआन
चढ़लहु ककरो कोरा तs
ककरो माथ आ कान्ह
हमही मिझबैत छलहु सबहक पियास
जेठ-बैसाखक बीच दुपहरिआ  
हमरा अछैते नहि कहिओ बेचल गेल पैन
ककरो हाथ बाट-बटोही आ कहरिया
नहि आई धरि कोनो डाक्टर-बैद
हमरा सँ करेलक ककरो परहेज
हम तोरा जकाँ नहि रहैत छलहु
छ महिना कात आ छ महिना हेंज
हम फेर लेब अवतार
कोनो नहि कोनो रूप में

रचनाकार :- दयाकान्त 

28.7.13

हम गाछ चढव (बाल कविता)

चल रौ मिता थान तsर
चढव आई आम पर
पाकल आम कौआ खोदैआ
लुक्खी बैसल आम पर
कनिये मिता हाथ लगा दे
मोट्गर छै बड गाछ
नहि आबैया पाँज में मिता
भरीगर अछि बड काज
नै अछि डारी झुकल कतहु
नै सिरही अपना पास
बिना आम तोरने नहि जायब
घुरि के अपन गाम पर
चल रौ मिता थान तsर
चढव आई आम पर

टी० वी० में देखने रहिन
मटका कोना फ़ोरै छै
मेघ में लटकल तौला लेल
एक-दोसराक कान्ह चरहै छै
भs जो गाछ पकैर के,
तsहु सब ओहिना ठार
एगो लात कान्ह पर राखिके
चढि गेलौ हम आम पर
चल रौ मिता थान तsर
चढव आई आम पर

रचनाकार :- दयाकान्त 

17.7.13

कतेक पीढ़ीक बाद

दुनु साँझ चुलहा पजडलै
कतेक दिनक बाद
पुरान धोती, नुआ छुटलै
कतेक पीढ़ीक बाद
नवका कपडा लेल दोकान गेलै
कतेक पीढ़ीक बाद
बोनि में भेटलै टाका
कतेक पीढ़ी-दर-पीढ़ीक बाद
अप्पन डीह पर घsर बनलै
कतेक पीढ़ीक बाद
बकरी घsर मे गाय बरद छै
कतेक पीढ़ीक बाद
गिरहत हरवाई सँ छुट्टी भेटलै
कतेक पीढ़ीक बाद
चरवाही छोड़ी दिल्ली, पंजाब कमाई छै
कतेक पीढ़ीक बाद
गाईर सँ नहि नाम पुकारै छै
कतेक पीढ़ीक बाद
जजमानक सुदी सँ छुट्टी भेटलै
कतेक पीढ़ीक बाद
ओकरो कोठी चाउर देखलकै
कतेक पीढ़ीक बाद
अप्पन हिसाब सँ भोट देलकै
कतेक पीढ़ीक बाद
ओकरो नवगछ्ली टुकला देलकै
कतेक पीढ़ीक बाद
पायल के झुन-झुन सुनलकै
कतेक पीढ़ीक बाद
ओकरो बैंक में खाता खुजलै
कतेक पीढ़ीक बाद
डिबिया नहि लालटेम जड़बै छै
कतेक पीढ़ीक बाद      
ओकरो बच्चा इस्कूल गेलै
कतेक पीढ़ीक बाद
टोल में पहिल मैट्रिक केलकै
कतेक पीढ़ीक बाद 
ओकरो बेटा कॉलेज देखलकै
कतेक पीढ़ीक बाद
साईकिल चढि बजाड़ घुमै छै
कतेक पीढ़ीक बाद

हमरा गाम घुमा दिया (बाल कविता)

                                          चित्र  - गुगल

बाबा यौ हमरा गाम घुमा दिया

नेने चलु हमरा कलम दिश
लुधकल छैक पाकल आम
कारी-कारी जामुनक झावा
देखियौ सुगा खोदैया लताम
कते दिन सँ कहै छी अहाँके
हमरा गाछ पर चढव सिखा दिया
बाबा यौ हमरा गाम घुमा दिया।

भोडे-भोड़ सब दिन अहाँ
करै छी पोखरी में स्नान
हमरा घाट पर नहा-सोना के
बैसा देत छी माँझ ठाम
देखियौ हम कते टा भs गेलहु
आबो ते हमरा हेलब सिखा दिया
बाबा यौ हमरा गाम घुमा दिया।

लेने चलु विदेश्वरक मेला
किन दिया हमरा खिलौना
रंग बिरंगक मधुर बिकाई छै
लाई झिल्ली आ रामदाना
भोडे से कहै छी अहाँ के
हमरा मेला घुमा दिया
बाबा यौ हमरा गाम घुमा दिया।


रचनाकार :- दयाकान्त 

4.6.13

आम (बाल कविता)




















जेबै गरमी छुट्टी में गाम
खेबै पाकल-पाकल आम
बम्बई किशुन भोग जर्दालु
कलकतिया आ सपेता आम
अपने सँ हम गाछ पर चढ़बै
डारी के खूब हिलेबै
पाकल-पाकल आम सबटा
झोरा में भरि-भरि अनबै
नहि खेबै हम गोराल आम
अहि बेर खेबै गछपक्कु आम
भोरे उठि के नहा-सोना के
जलखै, पनपिआय लs लेबै
बाबा के हम संग में लs के
कलम दिश चलि जेबै
ओतहि खेबै ओतहि खलेबै
नीन लागत ते सुतबै मचान
टुटी जेतै हमर नीन
जखने गाछ सँ खसतै आम
मैडम इस्कूल में कहने छली
सब फलक छै राजा आम
     
रचनाकार :- दयाकान्त

2.6.13

पुस


बड़ विकट मास ई पुस
लागि रहल अछि सुर्य महराज
हेरा गेला आब मेघ में
नहि देखैत छी रौद कहिओ
साँझ, दुपहरिया भोर में
दुबकल अछि चिडै-चुनमुनी
अपन-अपन खोप में
गबदी मारि सुतल कुकुर
बिच पुआरक दोग में
शीत-लहरी संग, सिह्की-सिहकी के
बहैत अछि पुरवा बसात
लागि रहल अछि हाथ पैर में
धेलक रोग लकवा वा वात
बाबा मैया सबहक मुँह सँ
निकलैत छैक एकेटा बात
नहि देखने रहि एतेक उमेर में
एहेन विकट पुसक जार
नहि छैक कोनो घुरक ओरियान
ठार केने सब चौकी दलान
हाथ पैर में फाटल बेमाअ
मैदान दिश जायब भेल प्रलाअ
पोखरिक पैन अछि बड कन-कन
साँझक आरती भs गेल बन्न
कतेक बुढ गेलाह अहिबेर गाछी
बैतरनी लेल नहि भेटैया बाछी
मरल बुढ़ियाक के देत उक
कखन एतैक दुलरुआ पुत 
बड़ विकट मास ई पुस

रचनाकार:- दयाकान्त

गिरगीट


गिरगीट के किया होइछै लाज
जा धरि छल ओ गाछी धेने
रहै छल गामक काते-कात
घुमैत रहैत छल मद-मस्त भs
कखनो डैर आ कखनो पात
निर्जन बोन हो वा पोखरिक महार
बदलैत रहैत छल ओ रंग हजाड़
जहिया सँ ओ टोल घुमलक
लोक देखि किया होइछै लाज
गिरगीट के किया होइछै लाज

कहैत छल ओ बाल-बच्चा सँ
नहि ओढ़ीहाँ  तु मनुखक ढाल
छी बदनाम हम अहि जग में
नहि जानि ककर अछि ई श्राप
जंगले में तु मंगल करिहाँ
नहि जहिआँ तु गामक कात
आजुक बहुरुपिया लोक देखि के
गिरगीट भेला पर हेतौ लाज
गिरगीट के किया होइछै लाज

छन में जेना ओ रूप बदलै छै
सोचिओ नहि सकमा तु जाबे काल
ऊपर सँ साधुक रूप धेने छै
करै छैक ओ मनुखक हलाल
परोछ में सदिखन गैर पढे छै
मुह पर बजै छै मिठगर बात
दुश्मन भs मुदा दोस्त बनल छैक
नहि छैक एकरा कोनो बातक लाज
गिरगीट के किया होइछै लाज 

रचनाकार:- दयाकान्त 



1.6.13

नवकी कानियाँक जरैया लहास


नहि कियो कानल नहि कियो खिजल
नहि केलक कियो चीत्कार
बिना चचरी कान्ह उठा के
 लs  गेलै सब भुतही महार 
माटिक तेल ढारी-ढारी के
झटपट केलक ओकर संस्कार
सूर्योदय सँ पहिने सब कियो
लोह-पाथर छुबा लेल ठार ।
नवकी कानियाँक जरैया लहास ।

पढ़व-लिखल सब काज में माहिर
भरल पुरल छल ओकर संस्कार
सौस-ससुर कs देवता जकाँ पुजय
दियर-ननैद के करै छल सत्कार
कतबो पति ओकरा मारय-पिटय
नहि करय कखनो आज्ञाक तिरस्कार
भरि दिन घर में खटैत रहै छल
रैत कनैत-कनैत होई छल परात
नवकी कानियाँक जरैया लहास  ।

भरि दिन छौड़ा तारी पिबै छल
नहि करैत छल कोनो रोजगार
चौक-चौराहाक मटरगस्ती में
अपना संग संगियोक जोगर
खा गेल सबटा सोन बेचि के
मंगलसुत्र लेल भेल बबाल
नवकी कानियाँक जरैया लहास  ।

रचनाकार:- दयाकान्त

तितली (बाल कविता)


तितली रानी तितली रानी
अहाँक रंग-रूप बड सुहानी
भरी दिन हमरा दौराबै छी
हाथ कखनो नहि आबै छी
कखनो चम्पा कखनो चमेली
सबटा फुल अछि अहाँक सहेली
रंग-बिरंगक फुल पर हरदम
रहैत अछि अहाँक बास
बैसल देखैत छी गाछ पर कखनो
जाई छी हमहू अहाँक पास
देखिते हमरा अहाँ उडि जाई छी
मोन भs जायत अछि उदाश
माय गे हमरो पैख लगा दे
तितली रंगक कपडा सिया दे
उडैत रहबै तितली के संग
भरी दिन हमहु आकाश 
लागत भुख-प्यास जखन हमरा
दौरल आयब हम तोरे पास

रचनाकार;- दयाकान्त  

31.5.13

मीडिया












 लोकतंत्र के चारिम खाम
लचार, अनाथ, गरीबक बोल
टुकुर-टुकुर ताकि रहल अछि अहाँक दिश
जकरा नहि छैक ओरियान
अपन बात रखबाक लेल
अपन अधिकार मंगबाक लेल
सरकार के अपन दुःख तकलीफ
सुनेबाक लेल कोनो साधन
सब बेर ठकहरबा आबि के ठैक लैत छैक
रंग-बिरंगक अश्वाशान दs के
देखैत छियैक एकर बच्चाक हाल
पेट में अन्न नहि छैक
फाटल-चिटल अंगा पर झलकैत हाड
गवाही छैक कुपोषणक
भोर सँ साँझ धरि
करैत रहैत छैक बकरी सँ बात
देखैत छियैक एकर शारीर पर
काँच करचीक दाग
काल्हि गिरहत फोरि देने रहैक
सगर देह, माल-जाल जकाँ
कुहरैत रहलै भरि दिन,
दु दिन पहिने एकरे बेटी कs
घेर लेने रहैक कुशियार में
मालिकक बेटा सब
नहि भेलैक रिपोर्ट दर्ज थाना में
उलटे दरोगा दपैट देलकै
कहिया धरि करब जयगान
अहि ठकहरबा सबहक
लोकतंत्र के चारिम खाम
लचार, अनाथ, गरीबक बोल

रचनाकार:- दयाकान्त
 

29.5.13

चन्दा मामा (बाल कविता)


चन्दा मामा चन्दा मामा
हमरो घर अहाँ आऊ ने
माय के हाथक दुध मलाई
हमरा संग अहाँ खाऊ ने
साँझ परैत सब दिन छत पर
हम अहाँ के तकैत छी
कहिओ जल्दी कहिओ देरी
अहाँ छत पर आबैत छी
कहिओ छोट कहिओ नम्हर
अहाँ किया रूप बनाबै छी
कहिओ किया हमरा सँ दुर
मेघ में किया नुकैत छी
करी-करी मेघ देखि के
अहाँ किया परैत छी
कहिओ अहाँ नीचाँ उत्तरि के
हमरा संग खेलाऊ ने
चन्दा मामा चन्दा मामा
हमरो घर अहाँ आऊ ने 

रचनाकार:- दयाकान्त 

बम ब्लास्ट

















एकटा नहि, दुटा नहि
भेलै सातटा बम ब्लास्ट
थर्रा गेल पुराक पुरा शहर
सुनशान भs गेल रोड
लोकक आवाजाही भs गेल बंद
दौड़ी रहल अछि लालबत्ती वाला गाडी
रंग-बिरंगक पुलिस वल
कियो राज्य सरकारक
तs कियो केन्द्र सरकारक
शुरू भs गेल जाँच प्रक्रिया
फेर शुरू होयत ओहा गायल गीत
सबटा अछि पडोसी देशक करतुत
ओहा रचलक बम ब्लास्ट करवाक शाजिश
फेर पकरल जायत कोनो निर्दोष
कोनो गरीब लचार
फेर घोषणा करत सरकार
मृत के लाख आ जख्मी के पचास हजार
फेर बहाल होयत कोनो जाँच आयोग
आ चलैत रहत जाँच
सालक साल
जा धरि सुखा नहि जायत मायक आँखिक नोर

रचनाकार:- दयाकान्त 

25.5.13

फनैत

हमर काका छैथ बsड  फनैत
जs कहियो कोनो काज परत तs
नहि ओ कखनो घsर  पर भेटैत
भोर उठि कs उच्चकाक संग
रहैत छैथ भरि दिन ब्लॉक ओगरैत
हमर काका छैथ बsड  फनैत |

अपन पेट संग भोटक लेल
सदिखन एक दोसराक लडबैत
दरोगा जी संग सेटिंग कs के
थाने में सबहक जमानत करबैत
हमर काका छैथ बsड  फनैत |

गाम विकासक कोनो काज में
रहैत छैथ हरदम टांग अरबैत
कोनो फंड कम्हरो सँ आयल तs
तिकरम कs के जेब भरैत
हमर काका छैथ बsड  फनैत

MP वा MLA इलेक्शन हो
सबहक भोटक ठेका लs लैत
नहि छैन व्यक्ति पार्टी सँ मतलब
भोट ओकरे जे बेसी टाका  देत
हमर काका छैथ बsड  फनैत |

सब बेर ग्राम पंचायत चुनाव में
देखैत छियैन चुनाव लडैत
नहि देखल आई धरि कहिओ
कोनो बेर जमानत बचैत 
हमर काका छैथ बsड  फनैत |

रचनाकार:- दयाकान्त 

24.5.13

अन्हरजाली

नहि होइछै कनियो एकरा लाज
दहेज़ मांगै छै सात लाख
सुदि संग दरसुदि जोड़ी कs
नहि बनैत छैक एतेक हिसाब
बेटा छैक एकर १२वीं पास
पुतहु भेटैत छैक बी ए पास
नहि छैक कनियो एकर विचार
छैक सिर्फ टाका सँ सरोकार
बुढ बाप के नहि कोनो जुइत
माय के नहि छैक लाजक छुइत
घटक काका जे बैसल छैथ दलान
बजला हमरा अखनो अछि धिआन
कोना केने रहि अहाँक विआहक ओरियान
अहि बातक कनि राखु मान
नहि छल अहाँ बाप के टाका आ सोन
नहि छल कोठी में चाउर दु-चारि मोन
सब दिस सँ जखन थाकि गेला
तकरा बाद हमरा कहलाह
कि हमर बेटी रह्तै कुमारि ?
लगनक बाँचल दिन दु-चारि
नहि जीवय देत कुटुम्ब-समाज
घर सँ निकलवा में होइया लाज
घटक भाई हम जोड़इ छी हाथ
हमरो बेटीक लेल कनि करियौ बात
हाथ धs अनलहु दोसरैत बsड़
विआहक भार लेलहु अपना माथ पर
लागल अछि अहाँके आँखि पर अन्हरजाली
कनियाँ नहि देखैत छियैक टाका खाली 

रचनाकार:- दयाकान्त   

23.5.13

अप्पन

के छी अप्पन के छी आन
आई धरि एकर नहीं भेल गियान
अप्पन घsर आ अप्पन दालान
अप्पन टोल आ अप्पन गाम
अप्पन विद्यालय आ अप्पन महाविद्यालय
अप्पन शहर आ अप्पन विश्वविद्यालय
अप्पन जिला आ अप्पन प्रदेश
पूरा भारत अप्पन देश
अप्पन भाषा अप्पन बोल
अप्पन बिरादरी अप्पन लोक
जा धरि छल हमर सुदिन
नवका मित्र बनैत प्रतिदिन
तन-मन-धन अहाँ लेल अर्पित
बेगर्ता हुआ तs बाजब मित
ओ जीवन कोनो जीवन थीक
एक दोसराक नहि सोचव नीक
गद-गद होइत छल सुनी के छाती
केहेन नीक अछि हमर संगी-साथी
परल जखन एकटा जरुरी काज
ताकय लगलौ अप्पन समाज
पहिने प्रदेश आ जिलाक लोक
तखन भाषा बिरादरीक लोक
ताकय लगलौ अप्पन संगी-साथी
मित्र-बन्धु आ भाय भैयारी
नहि भेटल कियो अप्पन लोक
जकरा लग करितौ हम शोक
भs गेल सबटा चुर गुमान
तखन गेल ईश्वर पर ध्यान
अंतरात्मा सँ आयल आबाज
कियाक  खोजै छाs अप्पन समाज
ई शरीरो नहि छियौक तोहर
ई शरीर तs छी एगो नश्वर |

रचनाकार:- दयाकान्त 

16.5.13

वारिस

कतेक दिनका बाद
कतेक कबुला-पाती केला पर
पाथर पर जनमलैक दुईब
भरोस नहि छलैक बुढिया के
एतैक अहि घरक वारिस
ओ वारिस आयल छैक गाम
गरमी छुट्टी में अप्पन गाम
आई बुढिया के खुशीक ठेकान नै
कखनो कोरा तs कखनो कनहा पर
नहि राखय दैत छैक पैर जमीन पर
नहि छुटलैक  कोनो देवता
परोपट्टा  भरि में,
जेहेन देवता तेहेन कबुला
किनको छागर, तs किनको आँचर
कतहु मधुर तs कतहु मुडन
खर्चा भs गेलैक सबटा टाका
ख़तम भs गेलैक कोठीक चाउर
आ भs गेलैक माथ पर कर्ज
ओकरा बुझल छैक
नहि देतैक बेटा पुतहु
गाम सँ दिल्ली जेवाक काल
टाका वा कोनो बोल-भरोस
फेर बुढ़िया के पेट काटि के
सधवय परतैक महाजनक ऋण
सुनय परतैक ओकर अंगरोठल बोल
वारिस गेला पर बंद भs जेतैक ख़ुशी,
बंद भs सोहर, समदौन 
बंद भs जेतैक गीत-नाद
रहतैक सिर्फ बुढियाक आँखि में नोर
आ वारिसक अधबोलिया बोल |

रचनाकार:- दयाकान्त 

12.5.13

हे माँ मिथिले

 हे माँ मिथिले
तू कियाक करैत छाँ / हमरा अपना सँ दूर
तोरा नहीं बुझल छौ
तोरा  बिना हम / एक पल नहि रहि सकैत छी
तोरा  बिन हमर शरीर / शरीर नहि रोबोट बनि  जायत अछि 
प्राणहीन  भय जायत अछि 
तोरा बिना हम छटपटैत रहैत छी
जेना पैन लेल माछ
तू कियाक करैत छाँ अपना सँ दुर
तोरा लेल हम नवजात शिशु छी
ओकरा लेल जेना स्तनपान
कुबेरक भंडार छैक
ओकरा लेल जेना  कोरा
समस्त संसार छैक
तहिना हमरो लेल ई माटि
चन्दन सँ बेसी सुगन्धित
आ स्वर्ग सँ सुन्दर अछि
हमरा नहि चाही मोटर कार
नहि चाही मारवल वाला मकान
जतय लगैत रहैत छैक
भारि दिन पोछा
बिछायल रहैत छैक
ऊपर सँ कालीन
तैयो रहैत छैक खतरा
इन्फेक्सन कs
हम छटपटैत रहैत छी
तोहर कोरा लेल
तोहर चरणक माटि के
स्पर्श करवाक लेल
सत्य कहैत छियो म़ाए
हमरा मोन परैत रहैत अछि
गाय गोबर सँ नीपल अंगना
आ चिकनी माटि सँ छछारल
घरक चिनवार
आ माटिक भीतक दीवार
जहि पर छापल रहैत छैक
रंग-बिरंगक चित्र |

रचनाकार:- दयाकान्त

10.5.13

आतंकवाद

आई पुरा शहर में
शहरे टा]नहि भरी देश में
पूंजीपति द्वारा ठार कायल
नवका दोकान, मिडिया में
सौंसे अछि एकेटा चर्चा
पकडल गेलैक भुखना
आतंकवादी भुखना
बड़ आतंक मचेने छल
डर सँ थर-थर कपैत छ्लै
पुरा शहर ओकरा सँ
कतेक केलक हत्या
कतेक केलक बलत्कार
अपहरण के खोलि लेने छल दोकान
ओकरा पर छलैक ईनाम
पुरा पचास हजारक
मिडिया वाला कय रहल अछि चिरौरी
टीआरपी के लेल
सुना रहल अछि मनगढ़ंत कहानी
टाकाक लेल
एको बेर नहि चर्चा भ रहल छैक
कोना बनल भुखना आतंकवाद
भुखना सँ आतंकवादी भुखना
के बनेलकैक ओकरा आतंकवादी
के लुटलक ओकर माय बोहिनक इज्जत
एगो बोनिहार भुखना
कोन उठा लेलक वन्दुक ?
के करतैक अहि बातक चर्चा ?
कि भेटतैक ओकरा न्याय ?
आकि न्यायक देवी, नुकेने रहति
अपन आँखि कारी कपडा में ?

रचनाकार:- दयाकान्त 

9.5.13

बुढ़िया ताकै छै नित बाट

चिप्पी पर चिप्पी लागल नुआ
पड़ल छैक ओहिपर गोत-गोबरक छाप
दुनु आंखि मोतियाबिन्द सँ आन्हर
पड़ल रहैत अछि सदिखन खाट
जs कियो बाट बटोही भेटै छै
पुछै छैक बुढिया एकेटा बात
कह बौआ हमर बौआक हाल
 बुढ़िया ताकै छै नित बाट

कुटिया-पिसिया कs के बुढिया
करबेलकै ओकरा बीए पास
अपने साँझ पर साँझ बितैत छ्लै
बौआ लेल मुदा दालि-भात
नहि कोनो त्रुटी भेलै पढवा में
बेच देलकै सबटा चास-बास
बुढ़िया ताकै छै नित बाट

छ मास के छल जखन बौआ
बुढबा धान रोपय गेल बाध
 जाइत काल डार भरि पैन छ्लै
आबैत काल भरि गेल धार
हेलवा में छल बड पारंगत
तइयो डूबी गेल बिचे धार
बुढ़िया ताकै छै नित बाट

बितैत फागुन चढीते चैत
गाम छोड़ना भs गेल तीन साल
नहि कोनो फोन नै चिठ्ठी भेजै छै
नहि कैञ्चा वा कोनो समाद
बिसैर गेलै अप्पन माय के बौआ
बुढ़िया के छै अखनो आस
बुढ़िया ताकै छै नित बाट |


रचनाकार:- दयाकान्त

27.4.13

आई

आई मानव किया मानव भ s क s
दानवक काज करै छै
आई मानव किया प्रेम सँ नहि
घृणा सँ स्नेह करै छै |
आई मानव किया दुश्मन भ s क s
दोस्तक रूप धेने छै
आई किया झूठक डर सँ
सत्य नुकायल फिरै छै
आई किया अपन माय-बाप सँ
बेटा दूर भागै छै
देशद्रोही अंग्रेजक संरक्षक
आई किया शासक बनल छै
जे भारत छल ज्ञानक नगरी
आई किया दूर भागल छै
गाँधी सुभाष चाचा नेहरु के
आई किया लोक विसरल छै
सीता अहिल्या सावित्रीक धरती पर
आई किया नारी जरै छै
दानी कर्णक अहि कर्मभूमि पर
दहेज़ में बेटा बेचै छै
आई किया जाति-पाति में
अपना के सब बाटें छै
आई धरती के नरक बना क s
चन्द्रा में जेवाक सोचै छै
हवा पानि में जहर मिला के
ग्लोवल वार्मिंग कहै छै |

रचनाकार:- दयाकान्त 

कहिया भेटतै इंदिरा आवास

यै मुखिया जी आवो कहु ने
कहिया भेटतै इंदिरा आवास
बड़का-बड़का  बाबु भैया सब
धोइध वाला जे मालिक कहवै छै
बड़का-बड़का कह्बैका सब
खादी कुरता आ पत्लूम पहिरै छै
बड़का-बड़का  ठोप वाला जे
सदिखन देखवै झुढ़े बजै छै
हमहू ओकरे सभक संग में
जमा केने रहिये दरखास्त
भ गेलै पुरान ओकर घर
कतय हरायल हमर दरखास्त
यै मुखिया जी आवो कहु ने
कहिया भेटतै इंदिरा आवास
कहियो बी.डी.ओ कहियो सी. ओ
कहियो किरानी कहियो DCLR
कहियो ग्रामसेवक कहियो कर्मचारी
तकैत फिरै छी हाट-बाज़ार
बिना टाका कियो गप्प नहि सुनत
घुमी के आउ जनता दरवार
हमर आगु कतेक लॉट निकलि गेल
आब कही धरि वान्हब आस
यै मुखिया जी आवो कहु ने
कहिया भेटतै इंदिरा आवास
बिचोलिया सब माल मरैया
झूठ-फूसी के फाईल बनबैया
दोसरक घर के फोटो ल s के
अपन मुकिलक काज करबैया
चपरासी सँ शाहब धरि ई
अपन अपन प्रतिशत लगबैया
नहि परितहु अहि घरक फेर में
ज s रहिता s हमरो चास-बास
यै मुखिया जी आवो कहु ने
कहिया भेटतै इंदिरा आवास |


रचनाकार:- दयाकान्त

11.1.13

हमरा संग किया पक्षपात

जखने भेलहु तीन महीना कs
भs गेल शुरू परीक्षा
अल्ट्रा साउंड करेवाक लेल
पुरा घsर जतेलक इच्छा
सुनते बेटीक नाम सब कियो
भ गेल सब हकोप्रत्याश
ससुर संग नैहर के सब पर
परि गेल आई बड़का संताप
हमरा संग किया पक्षपात

बैआ लेल होरलिक्सक बोतल
हमरा लेल छै बसिया-भात
ओकरा रंग-बिरंगक कपडा
हमरा दुटा फारक-सलवार
बैआ लेल पब्लिक स्कूल
हमरा अछि सरकारियेक आस
भरी दिन बरतन-बासन धो के
कहुना करै छी स्कूल पास
हमरा संग किया पक्षपात

नहि मंगैत छी घर में हिस्सा
नहि मंगैत छी जमीन-जायदाद
हम छी सिर्फ स्नेहक भुखल
बुझू  हमरो अप्पन औलाद
हमरा संग किया पक्षपात |


रचनाकार:- दयाकान्त

18.8.11

गीत



काका यौ.. काका यौ
हमर पढुआ काका यौ
अहाँ एहेन किया जुलुम करै छी
दै छी दिन में डाका यौ
काका यौ.. काका यौ
पढि लिखी अहाँ शहर घुमै छी
बनल छी अफसर बड़का यौ
तखनो बेटीक डर से किया
करबै छी किया अल्ट्रा यौ
काका यौ.. काका यौ
देत जखन फटकार बेटा
मोन परत तखन बेटी यौ
ओही बेटीक जनम से पहिने
पेटे में लै छी परीक्षा यौ
काका यौ.. काका यौ
देखियौ आई बेटी बेटा सँ
नहीं अछि कतहु पाँछा यौ
धरती, पैन आ अन्तरिक्ष में
फहराबै छै पताका यौ
काका यौ.. काका यौ
ऐना जs बेटीक डर सs सबकियो
करबेतै s अल्ट्रा यौ
माय, बहिन आ पुतहुक बिना
चालत कोना सृष्टिक चक्का यौ
काका यौ.. काका यौ
रचनाकार:- दयाकान्त

15.3.11

माय नहि ले हमर जान


तोरे गर्भ में पलि रहल छी
तोरे खुन सं अछि संज्ञान
हरदम अपन पेट निहारी के
किया करै छs पुतक ध्यान
बेटा नहि बेटीए सही
छी तोरे संतान
माय नहि ले हमर जान

किया लैत छs विद्युत परीक्षा
कानून कs नहि छs कोनो ज्ञान
ककरो कनियो भनक लग्तेई तs
नहि बचतौ कुलक मर्यादा-मान
कोना चालत श्रृष्टि बेटी बिन
यदि चाहत सब बेटे संतान
माय नहि ले हमर जान

युग-युग सँ हमरे पर हरदम
होएत अछि सब्त परिणाम
सीता, द्रोपदी, अहिल्या व मीरा
भेलीय सब युग में बदनाम
आब तs धरती पर एबा सँ पहिने
लैत अछि गर्भे में प्राण
माय नहि ले हमर जान

बिसरी गेलाs तू राजा जनक कs
हुनकर यश कीर्ति आर नाम
देह राखी विदेह कहबाथि
हुनका मात्र बेटीये संतान
जगत जननी सीता कs सदिखन
लैत अछि, राम से पहिने नाम
माय नहि ले हमर जान |


रचनाकार:- दयाकान्त

18.10.10

पांच लाख बौआक दाम


नहि कमाईत छथि फूटल कौड़ी
नहि रोजगारक कोनो ठेकान
दस बरख से धएने छथि दिल्ली
टाका
आबै छनि अखनो गाम
बाबू सूद-दरसुद
जोडि के
लगबैत छथिं बौआक दाम
पांच लाख बौआक दाम |

कहैत छथि एम.बी.ए केने छी
नहि चाही सरकारी नोकरी, नाम
एम.एन.सी. में नोकरी करैत छी
राखैत अछि कंपनी सबटा ध्यान
प्रवंधन के कोनो गप्प करू
तs
मुंह बेता जेना परम अकान
पांच लाख बौआक दाम |

घटक देखि के बाप बजैत छथि
बडका हाकिम हमर सन्तान
गाडी-बंगला नोकर-चाकर
सब चीजक ओतय
ओरियान
ऑफिस में बडका-बडका हाकिम
करैत रहैत छैक बौआके सलाम
पांच लाख बौआक दाम |

अबिते लगन घटकक आसमे
मखमल जाजीम सोभय मचान
सिल्क कुर्ता संग परमसुख धोती
सजि-धजि बैसथि बाप दलान
जखन देखु भरल रहैत छैन
चाहक संग खिलबट्टी में पान
पांच लाख बौआक दाम |

अहि लगन में लुल्हा लंगडा
नहि बांचल कियो बहिर अकान
पैंतीस बीतल
चढि गेल छत्तीस
नहि सुनैत अछि कियो कान
हमर सपुतक शुभ लगन में
सब अप्पन 
बनि गेल अछि आन
पांच लाख बौआक दाम |


रचनाकार:- दयाकान्त  

22.2.10

भगवती गीत



हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |


हम छी मुरख बड़ अज्ञानी
नहि जप-तप-पूजा पाठ जानी
बस आस अहींक अछि अम्बे
मुरख बुझि सबटा माफ करू

हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |

हम फसल छी बीच भ्रमर माता
नहि अछि कोनो एकर अता-पता
अहि बिपत्ति सं आब अहीं माता
अबला जानि उद्धार करू |

हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |

छी मायाजाल में हम ओझरल
नहि जपि अहांक नाम बिरल
यदि अहाँ माय बिसरी जेबै
और ककर हम आस करू|

हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |

पुत कपूत ते होय माता
नहि मात कुमाता होय कौखन
अहि पातकी पुत के हे माता
आब अहीं बेरा पार करू |

हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |

 रचनाकार:- दयाकान्त  

गाँधी

दीवा राति स्वपन एक देखल
गाँधी जी सिरमा में ठार
वस्त्र लंगोटी हाथ में डंडा
बिना मांस के काया हार
बौया हमरा स्वर्गलोक में
आत्मा करैया सत्तत धित्कार
स्वर्ग समान छल जे भारतवर्ष
के करत आब ओकर रखवार
कि भेल हमर खादी, चरखा
गीता, लंगोटी, लोटा आ खरपा
कि भेल हमर सपनाक रामराज
के चोरेलक टैगोरक 'ताज'
किया उठल अहिंसा सँ विश्वास
गृह हिंसा सँ बिछल आई लाश
प्लास्टिक सँ आई बनैया तिरंगा
नेतोक देह पर नहि खादीक अंगा
टी-सर्ट नीकर में घुमैया नाड़ी
नहि पहिरैत कियो खादी साड़ी
फेर फिरंगीक भय गेल राज
MNC के नाम पर चलबैया काज
घुश देब कर्तव्य आ लेब अधिकार
मानवता के केलक धिक्कार
कोना रहत भारत अछुन्न
हर प्रदेश के अलगे धुन्न
के बनत सीमाक रक्षक
देशही में बसैया भक्षक
खून से लथपथ नेताक हाथ
देशद्रोहक करैत ओ काज
करय फसाद मिली नेता 'आला'
हर महिना कोनो नव घोटाला
जमाखोर के बढ़ी गेल पेट
मिलावट कय कटैया घेट
धर्मक नाम पर होइया ब्यपार
सब मजहब के अलग ढीकेदार
हमरा नीदक भेल विराम
दुने के मुह से निकलल 'हे राम'