Pravasi Mithila

23.7.14

दु कठबा बाड़ी

बौआ सुनि ले कान खोलि के
द दे हमर पाई सुद जोरि के
कतहु सँ तु कsर ओरियान
भs गेलौ पुरा बारह मास
अगिला महिना सँ लगतौ
सुदक सुद दरसुदी जोरि के
नहि ते लिख दे दु कठवा बाड़ी
चुपचाप तु हँसी खुसी से
.... काका हम ते जोरि लेने रही हाथ
मैन गेल छल सगर समाज
ग्यारह दुना बाईसक लेल
गरदनि सँ उतरि तोरवाक लेल
अहाँ कहने रहि सुन रौ बैआ
तोहर छलखुन बाप ते हमर छला भैया
करब नीक सँ श्राद्ध और भोज
नहि करब कोनो तरहक ओज
कनिये टा मे मरि गेल छल बाप
केलहुँ बी. ए. हुनके परताप
फेर भैया की घुमि के अयता
कहिया भेटत ऋण सधेवाक मौका
भरि गाम हमर होयत हसारथ
लोक लाज लेल टाका कोन पदारथ
तखन किया मांगै छी दु कठबा बाड़ी
हमर बाल-बच्चा कतs बनाsत दु -चारी

रचनाकार : दयाकान्त

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