Pravasi Mithila

22.5.14

लंगड़ा काका

एकटा सुखायल टाँग
आ लाठी पर ठार लंगड़ा काका
जिनका नहि जरुरत परलैन
कहिओ दोसराक टाँगक
बच्चा मे वा जुआनी मे
नहि भेलैन मुंह मलिन कनिको
विआह नहि भेला पर
नहि परहलखिन गारि कहिओ
दिनकर दीनानाथ के
अपन टाँगक लेल
नहि पसारलैथ अपन हाथ
बहीर सरकार लग
जकर एकटा अंग नहि
पुरा शरीर विकलांग छै
जकरा नहि सुनाई परैत छैक
गरीबक चित्कार कहिओ
जकरा नहि देखाइत छैक
निर्दोष बचियाक बलतकार कहिओ
तखन कोन फायदा ओकरा सँ
हाथ जोरि के फरियाद केला सँ  l

रचनाकार : दयाकान्त

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