Pravasi Mithila

2.8.13

बरखा (बाल कविता)













कारी-कारी मेघ लागल छै
छिटकै छै बिजलोका
रहि-रहि के मेघ गरजै छै
फुटै छै जेना फटक्का
टिपीर-टिपीर बरसय लगलै
सगरो खेत खरिआन
आई संगी-साथी सब मिल
करब बरखा में खुब स्नान
मैया कहै छै नहि नहा बैउआ
भs जेतौ तोरा जड़-बुखार
चुबय लगतौ नाक सँ पोटा
हेतौ उकाशी परमा बिमार
देखहिन हमर संगी-साथी सब
बरखा में करैया स्नान
हम कखन तक बैसल रहब
हाथ-पैर जोड़ी दालान
जे हेतैक से देखल जेतै
हमहू करब बरखा में स्नान
नहि भेटत फेर एहेन मौका
दौगी-दौगी करब खुब स्नान

रचनाकार :- दयाकान्त 

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