Pravasi Mithila

2.6.13

गिरगीट


गिरगीट के किया होइछै लाज
जा धरि छल ओ गाछी धेने
रहै छल गामक काते-कात
घुमैत रहैत छल मद-मस्त भs
कखनो डैर आ कखनो पात
निर्जन बोन हो वा पोखरिक महार
बदलैत रहैत छल ओ रंग हजाड़
जहिया सँ ओ टोल घुमलक
लोक देखि किया होइछै लाज
गिरगीट के किया होइछै लाज

कहैत छल ओ बाल-बच्चा सँ
नहि ओढ़ीहाँ  तु मनुखक ढाल
छी बदनाम हम अहि जग में
नहि जानि ककर अछि ई श्राप
जंगले में तु मंगल करिहाँ
नहि जहिआँ तु गामक कात
आजुक बहुरुपिया लोक देखि के
गिरगीट भेला पर हेतौ लाज
गिरगीट के किया होइछै लाज

छन में जेना ओ रूप बदलै छै
सोचिओ नहि सकमा तु जाबे काल
ऊपर सँ साधुक रूप धेने छै
करै छैक ओ मनुखक हलाल
परोछ में सदिखन गैर पढे छै
मुह पर बजै छै मिठगर बात
दुश्मन भs मुदा दोस्त बनल छैक
नहि छैक एकरा कोनो बातक लाज
गिरगीट के किया होइछै लाज 

रचनाकार:- दयाकान्त 



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