Pravasi Mithila

23.5.13

अप्पन

के छी अप्पन के छी आन
आई धरि एकर नहीं भेल गियान
अप्पन घsर आ अप्पन दालान
अप्पन टोल आ अप्पन गाम
अप्पन विद्यालय आ अप्पन महाविद्यालय
अप्पन शहर आ अप्पन विश्वविद्यालय
अप्पन जिला आ अप्पन प्रदेश
पूरा भारत अप्पन देश
अप्पन भाषा अप्पन बोल
अप्पन बिरादरी अप्पन लोक
जा धरि छल हमर सुदिन
नवका मित्र बनैत प्रतिदिन
तन-मन-धन अहाँ लेल अर्पित
बेगर्ता हुआ तs बाजब मित
ओ जीवन कोनो जीवन थीक
एक दोसराक नहि सोचव नीक
गद-गद होइत छल सुनी के छाती
केहेन नीक अछि हमर संगी-साथी
परल जखन एकटा जरुरी काज
ताकय लगलौ अप्पन समाज
पहिने प्रदेश आ जिलाक लोक
तखन भाषा बिरादरीक लोक
ताकय लगलौ अप्पन संगी-साथी
मित्र-बन्धु आ भाय भैयारी
नहि भेटल कियो अप्पन लोक
जकरा लग करितौ हम शोक
भs गेल सबटा चुर गुमान
तखन गेल ईश्वर पर ध्यान
अंतरात्मा सँ आयल आबाज
कियाक  खोजै छाs अप्पन समाज
ई शरीरो नहि छियौक तोहर
ई शरीर तs छी एगो नश्वर |

रचनाकार:- दयाकान्त 

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