Pravasi Mithila

9.5.13

बुढ़िया ताकै छै नित बाट

चिप्पी पर चिप्पी लागल नुआ
पड़ल छैक ओहिपर गोत-गोबरक छाप
दुनु आंखि मोतियाबिन्द सँ आन्हर
पड़ल रहैत अछि सदिखन खाट
जs कियो बाट बटोही भेटै छै
पुछै छैक बुढिया एकेटा बात
कह बौआ हमर बौआक हाल
 बुढ़िया ताकै छै नित बाट

कुटिया-पिसिया कs के बुढिया
करबेलकै ओकरा बीए पास
अपने साँझ पर साँझ बितैत छ्लै
बौआ लेल मुदा दालि-भात
नहि कोनो त्रुटी भेलै पढवा में
बेच देलकै सबटा चास-बास
बुढ़िया ताकै छै नित बाट

छ मास के छल जखन बौआ
बुढबा धान रोपय गेल बाध
 जाइत काल डार भरि पैन छ्लै
आबैत काल भरि गेल धार
हेलवा में छल बड पारंगत
तइयो डूबी गेल बिचे धार
बुढ़िया ताकै छै नित बाट

बितैत फागुन चढीते चैत
गाम छोड़ना भs गेल तीन साल
नहि कोनो फोन नै चिठ्ठी भेजै छै
नहि कैञ्चा वा कोनो समाद
बिसैर गेलै अप्पन माय के बौआ
बुढ़िया के छै अखनो आस
बुढ़िया ताकै छै नित बाट |


रचनाकार:- दयाकान्त

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