Pravasi Mithila

17.2.10

बाढि

हाथ जोरी के विनय करै छी
सुनु माँ कमला, कोशी
बकसि दियै आब मिथिला के
पुत्र टुगर भेल चैदिस
चिनवार पर सँ बहै छल धार
जान बचायब भेल पहाड़
नहि खेवाक कोनो ओरियान
बितल अन्न बिन कतेको साँझ
नेना-भुटका मुँह तकै छल
मायाक आँखी सँ नोड खसै छल
बाप बेचारा बेबस बैसल
अपना माथ पर हाथ धेने छल
दुधपीबा बच्चा करै छल सोर
मायक दुध, सुखायल ठोर
नहि जानि कोन जन्मक ई पाप
पुत्र बियोगक परल संताप
कियाक बिधाता भेला बाम
नहि छोरल खरदुतियाक ओरियान
देल कमलाक कतेको साँझ
तइयो मुइन फुटल अंगनाक मांझ
बेटा, पुतोह, नैत आ नाती
बहि गेल सबकियो टूटी गेल छाती
कनि-कनि बढिया भेल बताह
सागर गाम में मचल तवाह
सुखी गेल पानि सुखल नोर
पसरि गेल महामारीक प्रकोप
बाध-बोन सब भेल बिरान
सुखी गेल गाछ उजरल मचान
भुतही पोखरी में उरैया बाल
उच्चका डीह पर लगावय जाल
स्वर्ग से सुन्दर छल ई धरती
भय गेल आई अनाथ
व्याकुल पुत्र छटपटा रहल जेना
बिना पानि के माछ |

रचनाकार:- दयाकान्त  

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