Pravasi Mithila

22.2.10

भगवती गीत



हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |


हम छी मुरख बड़ अज्ञानी
नहि जप-तप-पूजा पाठ जानी
बस आस अहींक अछि अम्बे
मुरख बुझि सबटा माफ करू

हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |

हम फसल छी बीच भ्रमर माता
नहि अछि कोनो एकर अता-पता
अहि बिपत्ति सं आब अहीं माता
अबला जानि उद्धार करू |

हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |

छी मायाजाल में हम ओझरल
नहि जपि अहांक नाम बिरल
यदि अहाँ माय बिसरी जेबै
और ककर हम आस करू|

हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |

पुत कपूत ते होय माता
नहि मात कुमाता होय कौखन
अहि पातकी पुत के हे माता
आब अहीं बेरा पार करू |

हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |

 रचनाकार:- दयाकान्त  

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