Pravasi Mithila

30.3.14

घुमि जो तुं सोन चिड़ैया

 घुमि जो तुं सोन चिड़ैया
नहि जो छोड़ि दूर देश रे
स्वर्ग सँ सुन्दर धरती छोड़ि के
बसमा कतs विदेश रे 

नहि चाहि हमरा टाका कौड़ी
नहि चाहि सनेश  रे
अपन टुटल टुटली मरैया
करब  जीवन हम शेष रे

अपन स्वार्थक खातिर तोहर
कतरि लेतौ दुनु पाँखि रे
नहि रहमा तु उरवाक काबिल
नहि रहतौ तोरा आँखि रे

 अपन बुद्धि आ श्रमक खरचा
करमा यदि तु गाम रे
अपनहि धरती स्वर्ग बनि जेतौ
भेटथुन एतहि भगवान रे

रचनाकार : - दयाकान्त

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