Pravasi Mithila

3.12.09

ईक्कसवी सदीक फगुआ


ऋतु बसन्त के भेल प्रवेष
जाड़क नहि आब कोनो कलेष
मज्जर से गमकैत अछि आम
गाबै फगुआ सब बैस दलान
कियो मारै ढोल पर हाथ
किया दैत जोगिराक साथ
निकलैत जखन षिव के झांकी
बचैत नहि छल ककरो खांखी
मायक हाथक मलपुआक स्वाद
अबैत अखनो फगुआ मे याद
ब्रह्मस्थन में जमै छल टोली
भड़ल रहै छल भांगक झोली
भौजी हाथक रंग गुलाल
बजबैत जखन खुषीसॅ ’लाल’
सबकिया रंग में सराबोर
राग द्वेस सब भेल बिभोर
ईक्कसवी सदीक फगुआक हाल
केने अछि बड़ आई बबाल
नहि निकलैत आब रंगक झोली
एसएमएस से सब हैप्पी होली
आईटी में नव रंगक खेल
घरे से सब भेजैत ई-मेल
दु-चारि टा चित्र कट पेस्ट
नहि करैत छथि समय वेस्ट
नहि निकलैत भांगक डोल
दारू पी सब करै किलोल
बाजै सबतरि अस्लील सीडी
दुर भागै फगुआसॅ नव पीढी
आधुनिकताक दौर में हम
कयल महात्म फगुआक कम

रचनाकार:- दयाकान्त 

1 टिप्पणी:

  1. अपने कनेक फराक प्रकृतिक काज कए रहल छी। हिंदी केर विपरीत,मैथिली में कोनहु वेबसाइट एखन विचार-मंचक रूप में आगू नहिं आयल छैक। पोस्ट के अद्यतन करैत रहू। शुभकामना लिअ।
    www.krraman.blogspot.com
    www.maithilionline.blogspot.com
    सादर-कुमार राधारमण

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