कतय गेलाह समधि महराज
ई की अनलहुँ डाला भाड़ ?
भरि गाम में होयत हसारथ
केहेन दरिद्र घर बेटा बिआहल
नहि बुझल छल ते पुछियो लैतहुँ
कतेक टा अछि हमर गाम
एको मुठी के बाँटब जs ते
चाही पाँच बोरा मखान
दस चंगेरा खाजा चाही
पंद्रह टा लड्डु के भाड़
बिस तौला दही चाही
रसगुल्ला चाही दस हजार
एक महिना पहिने अहाँके
देने रही हम लिस्ट पठाय
तैयो अहाँ जनिबुझी के
देलहुँ हमर नाक कटाय
सोन सनक बेटा हम देलहुँ
पढ़ल लिखल एतेक गुणवाण
नहि केलहुँ बिचार एकर कनि
कोना बाँचत हमर मान सम्मान
अपने मुँह सँ बाजल छलहुँ
कोजगरा मे देब फटफटीआ
नहि अछि मोल जबानक कोनो
की भs गेल ठार अहाँक खटिआ ?
दयाकान्त
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