नहि कियो कानल नहि कियो खिजल
नहि केलक कियो चीत्कार
बिना चचरी कान्ह उठा के
लs गेलै सब भुतही महार
माटिक तेल ढारी-ढारी के
झटपट केलक ओकर संस्कार
सूर्योदय सँ पहिने सब कियो
लोह-पाथर छुबा लेल ठार ।
नवकी कानियाँक जरैया लहास ।
पढ़व-लिखल सब काज में माहिर
भरल पुरल छल ओकर संस्कार
सौस-ससुर कs देवता जकाँ पुजय
दियर-ननैद के करै छल सत्कार
कतबो पति ओकरा मारय-पिटय
नहि करय कखनो आज्ञाक तिरस्कार
भरि दिन घर में खटैत रहै छल
रैत कनैत-कनैत होई छल परात
नवकी कानियाँक जरैया लहास ।
भरि दिन छौड़ा तारी पिबै छल
नहि करैत छल कोनो रोजगार
चौक-चौराहाक मटरगस्ती में
अपना संग संगियोक जोगर
खा गेल सबटा सोन बेचि के
मंगलसुत्र लेल भेल बबाल
नवकी कानियाँक जरैया लहास ।
रचनाकार:- दयाकान्त
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