Pravasi Mithila

18.8.11

गीत



काका यौ.. काका यौ
हमर पढुआ काका यौ
अहाँ एहेन किया जुलुम करै छी
दै छी दिन में डाका यौ
काका यौ.. काका यौ
पढि लिखी अहाँ शहर घुमै छी
बनल छी अफसर बड़का यौ
तखनो बेटीक डर से किया
करबै छी किया अल्ट्रा यौ
काका यौ.. काका यौ
देत जखन फटकार बेटा
मोन परत तखन बेटी यौ
ओही बेटीक जनम से पहिने
पेटे में लै छी परीक्षा यौ
काका यौ.. काका यौ
देखियौ आई बेटी बेटा सँ
नहीं अछि कतहु पाँछा यौ
धरती, पैन आ अन्तरिक्ष में
फहराबै छै पताका यौ
काका यौ.. काका यौ
ऐना जs बेटीक डर सs सबकियो
करबेतै s अल्ट्रा यौ
माय, बहिन आ पुतहुक बिना
चालत कोना सृष्टिक चक्का यौ
काका यौ.. काका यौ
रचनाकार:- दयाकान्त

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