हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |
हम छी मुरख बड़ अज्ञानी
नहि जप-तप-पूजा पाठ जानी
बस आस अहींक अछि अम्बे
मुरख बुझि सबटा माफ करू
हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |
हम फसल छी बीच भ्रमर माता
नहि अछि कोनो एकर अता-पता
अहि बिपत्ति सं आब अहीं माता
अबला जानि उद्धार करू |
हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |
छी मायाजाल में हम ओझरल
नहि जपि अहांक नाम बिरल
यदि अहाँ माय बिसरी जेबै
और ककर हम आस करू|
हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |
पुत कपूत ते होय माता
नहि मात कुमाता होय कौखन
अहि पातकी पुत के हे माता
आब अहीं बेरा पार करू |
हे जगत जननी दुर्गा माता
हम दीन-दुखी के नहि बिसरू |
रचनाकार:- दयाकान्त
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें